एक अप्रेम कहानी

"प्रेम कहानी का अंत इतना घटिया होगा सोचा भी नहीं था। जिस तरह से कहानी में उबाल आ रहा था। कहानी रच पच रही थी। मसाले मिल रहे थे। लग रहा था कि अच्छा अंत होगा। मगर एक चोट पड़ी या यों कहो यार छिपकली गिर गई और सब गड़बड़ हो गया।

मैं तो इस कहानी में कहीं नहीं आता। थोड़ी बहुत घटनाओं का दर्शक भर रहा। मुझे तो मालूम भी बहुत बाद में चला कि हमारे बगल में यह सब चल रहा है।" शर्मा बात समाप्त कर चुप्पी लगा गया। अपनी बात के प्रभाव को परखने के लिए। शर्मा में किस्सागोई वाला गुण है। याददाश्त तेज है। घटनाओं का वर्णन इतने विस्तार से करता है कि लगता है कि वह आपके सामने ही घटी हो। उत्सुकता बनाए रखता है। वो इस घटना के बारे में बता रहा था।

"घटना है हमारे नमक मंडी की गली के मकान की। सर्राफा खत्म होते ही नमक मंडी की गली आ जाती है। बड़ी अजीब घुमावदार जगह है। संकरी गली में पच्चीस कदम सीधे, चार कदम बांए, बीस कदम फिर सीधे, पंद्रह कदम दाएं, छः कदम सीधे जाने पर एक छोटा चौक आता है। चौक की चारों भुजाओं पर एक एक मकान बना है। हर एक कोने में एक एक रास्ता है। दो कोनों के रास्ते आगे जाकर बंद हो जाते हैं। पहली बार गली में कोई आए तो अवश्य उन रास्तों पर ही जाएगा, जहां जाकर गली बंद हो जाती हैं। फिर निराश होकर लौट आएगा। इसी चौक की चार भुजाओं में से एक पर स्थित है चार मंजिला मकान- व्हाईट हाउस। सफेद रंग से पुता। क्या बताऊं यार इसका मालिक भी अपने आप में नमूना है! लोग उसे सफेद भूत कहते हैं। सफेद भूत। सफेद गांधी टोपी,सफेद शेरवानी, सफेद धोती और सफेद जूते-मोजे पहनता है। उसकी साइकिल में भी सफेद सीट कवर है। कहीं आता जाता है तो अटैची भी सफेद उपयोग में लाता है। उसकी बातें छोड़ यार। फिर कभी सुनाऊंगा।

इसी बिल्डिंग में नीचे की मंजिल पर मकान मालिक का परिवार रहता है। वह, उसकी पत्नी और एक मंदबुद्धि का लड़का। दूसरी मंजिल के कमरे किराए पर दे रखे थे। बाद में सोनी नाम का लड़का उसमें रहने लगा था। भिंड, मुरैना की ओर का था। पढ़ने आया था। तीसरी मंजिल पर सिंह परिवार रहता। परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चे। एक लड़का, एक लड़की। ज्यादा सभ्य भी नहीं थे। सबसे ऊपरी मंजिल हमारे नाम थी। तुम तो मेरा व्यवहार जानते ही हो। मोहल्ले के हम उम्र लड़कों से अच्छा याराना था। लुंगाड़े भी अपनी बात माना करते थे। सिंह परिवार ने मकान मालिक पर धाक जमा रखी थी। किराया भी नहीं देते थे। शुरू में तो मुझे भी दबाने का प्रयास किया। सफल नहीं रहे,बेचारे ! फिर तो वे अपने काम से काम रखते और हम अपने हाल में व्यस्त रहते।

एक दिन मोहल्ले के एक लड़के ने बताया- "भय्या, नीचे वाला लड़का तो चालू है। चालू। आज तो मार खाता साला।"

"क्यों क्या हुआ?" मैंने पूछा।

"वो बाजू वाला है ना, योगाचार्य। वो उसे धमका रहा था।"

"अच्छा।"

"मैं सार्वजनिक नल पर पानी भर रहा था। वो छोरा भी पानी भरने आया था। तब मैंने सुना योगाचार्य उससे पूछ रहा था- पढ़ने आए हो बेटा? लड़का बोला- जी सर। वह बोला- तो बेटा पढ़ाई करो। सभ्यता से रहो। नहीं तो हाथ- पांव टूट जाएंगे। सुनकर छोरा भाग गया।" साथ ही उसने टिप्पणी जड़ी- "भय्या, मुझे तो लौंडिया का चक्कर लगता है।"

"होगा यार। अपने को क्या? हां, मंजा कब सुतने का है? संक्रांति आ रही है।"

बातें बदल गई। हम अपनी बातों में मगन हो गए। कुछ दिनों बाद एक रात नौ भी नहीं बजे होंगे कि रोने की आवाज आने लगी। जोर- जोर से। सब आश्चर्यचकित रह गए। कौन रो रहा है? पता लगाया तो मालूम पड़ा सोनी रो रहा था। हम लोगों ने उसका दरवाजा पीटा। चीखें-चिल्लाए। उसने दरवाजा नहीं खोला। लगभग आधे घंटे तक यह चलता रहा होगा। फिर अपने आप चुप हो गया। हम लोगों ने अंदाज लगाया कि बेचारे को घर की याद आ रही हो होगी।

थोड़े दिनों बाद फिर वही रोना-धोना। इस बार रात के दस बजे से शुरू हुआ। हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया। सोनी से ज्यादा घनिष्ठता नहीं थी। रास्ते में कभी हाय, हेलो हो जाती थी बस। इसलिए उससे पूछने का मतलब भी नहीं था।

एक रात हमारे मंडली गप्पे लड़ा रही थी कि वह कमरे में आया। मुझसे बोला- "भाई साहब, आप से थोड़ा सा काम है।"

मैंने कहा- "कहो।"

"यहां नहीं, थोड़ा बाहर घूम आते हैं।"

"क्या बात है? ये तो सभी लोग अपने ही हैं।"

"फिर भी चलिए ना।"

सोचा, होगी कोई बात। उसके साथ चल दिया। गली पार कर सर्राफा तक पहुंचे। मैंने पूछा- "कहो क्या बात है?"

"वह बोला रामघाट तक चलते हैं।"

रास्ते में फालतू बातें होती रही। हम घाट पर पहुंच गए। अंधेरा था। सुनसान। मेंढकों के टर्राने की आवाज आ रही थी। अच्छी जगह देख कर बैठ गए। वह कुछ देर चुप रहा फिर अचानक बोला- "मैं सिंह की लड़की के बिना नहीं रह सकता।"

मेरी समझ में कुछ नहीं आया। भौंचक्का सा उसका मुंह देखता रहा।

"हां, भाई साहब। मुझे उससे प्यार हो गया। वह भी मुझे प्यार करती है। उसके घर वाले उसे घर में बंद रखने लगे हैं। मुझे भी धमकी दी है।"

मैं कुछ समझा। मैंने पूछा- "कब से चल रहा है यह चक्कर?"

उसने बतलाया संक्रांति से। ज्यादा विस्तार से वर्णन नहीं करूँगा अन्यथा झलाओगे।

छत पर वे पतंग उड़ा रहे थे। सोनी भी वहीं पर था। पतंग लूटने के चक्कर में सिंह की लड़की गिरने वाली थी। सोनी ने उसे संभाल लिया। लड़की की मां ने सोनी का आभार माना। कुछ बातें होती रही। शाम को सिंह जब घर पर नहीं था तब वह चाय बना कर ले गया। जिद्ध कर के पिलाई। लड़की कप वापस करने आई तो कप के बजाय लड़की का हाथ सोनी के हाथ में आ गया। लड़की ने छुड़ाया नहीं। शरमा गई। प्यार हो गया। कुछ दिनों बाद लड़की स्कूल जाने के बजाय उसके कमरे में चली जाती। वे घंटों कमरे में बैठे रहते। लड़की के घरवालों को मालूम पड़ गया तो उन्होंने लड़की की पिटाई कर दी। उसे पिटाई का मालूम पड़ता और इधर कमरा बंद करके दहाड़े मार-मार कर रोता। हम समझते थे कि साले को घर की याद आ रही है। वह तो लड़की को पटाने के पैंतरे चल रहा होता। अब लड़की के बाप ने धमकी दी कि यदि उसने मकान खाली नहीं किया तो गुंडों से पिटवा देगा।

मैंने कहा-"देखो, तुम्हारे लफड़े से हमें मतलब नहीं। तुम्हें प्यार है तो अपने घर वालों से बात करो। शादी कर लो।"

"मैंने अपने घर वालों को बता दिया है। वे तो तैयार है। लड़की के घर वाले नहीं मानते।"

"तो ठीक है। तुम प्रयास करते रहो। गलत कामों में हम तुम्हारे साथ नहीं है। दादागिरी से कोई मकान खाली नहीं करवा सकता।"

हम राम घाट से घर लौट आए। यही निर्णय जोर से बोल कर मैंने अपनी मंडली को सुना दिया ताकि सिंह परिवार भी सुन ले। बहुत दिनों तक सब सामान्य सा दिखता रहा।

एक दिन मालूम पड़ा कि सोनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सिंह की शिकायत पर। उस पर नाबालिग लड़की को भगाने का आरोप था। बाद में वह जमानत पर छूट गया। उसने मकान भी खाली कर दिया। यह भी मालूम पड़ा कि वह ऐसी हरकत पहले भी दो चार स्थानों पर कर चुका है। कई जगह उसकी पिटाई भी हो चुकी है।

बाद में एक बार रास्ते चलते टकरा गया। पूरा बेशर्म लगा। दंभ से बोल रहा था- "अरे, मैं छोड़ने वाला नहीं उन लोगों को। बदनाम करके रख दूंगा। सबको बता दूंगा कि मैं नहीं लड़की मुझे भगाने वाली थी। कैसे करते है उसकी शादी ये लोग? देखता हूं। मेरा क्या - यह नहीं तो और सही ! मुझे कौन सी उससे शादी करना थी।"

सुनकर घृणा सी हो गई। इतनी नीचता। उसका यह रूप तो रोने वाली रातों और रामघाट पर हुई मुलाकात वाले रूप से विपरीत था। पूरा उल्टा।"

"फिर इस कहानी का क्या हुआ? मैंने प्रश्न किया।

"होगा क्या ! वही जो ऐसे मामलों में होता है। कोर्ट के बाहर समझौता हो गया। लड़की की शादी हो गई। जल्दी ही। सोनी, सुना है कि अभी भी मकान बदलता रहता है। कभी यहां तो कभी वहां।" कह कर शर्मा चुप हो गया। कुछ उदास भी।

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आंखिन देखी,कागद लेखी

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